🙏🙏ॐ हरि शरणं गुरुदेव, मानव का चरित्र सुदृढ़ करने में कौन-कौन से आवश्यक तत्व हैं, आज हम जिस दौर से गुज़र रहें हैं हमारे आस-पास सुदृढ़ चरित्र, समाजिक सार्थक संवाद और सही एवं सार्थक सोच के साथ संदेश को व्यापक स्तर पर चलनें में समर्थ हो , मार्गदर्शन हेतु 🙏🙏

प्रिय श्रद्धालु,
आपने दो प्रश्न पूछे थे—पहला यह कि मानव चरित्र को सुदृढ़ बनाने के लिए कौन-कौन से तत्व आवश्यक हैं?
आज इसी विषय पर विचार करते हैं।

मानवीय चरित्र तीन आधारों पर खड़ा होता है—विचार, संवेदना, और कर्म।
मनोवैज्ञानिक इन्हें Knowing, Feeling, और Willing कहते हैं।
Knowing—अर्थात सही ज्ञान, सही विचार।
Feeling—अर्थात भावना या मानवीय संवेदना।
और Willing—अर्थात कर्म, आचरण, व्यवहार; जो हम वास्तव में करते हैं। इनमें विचार भावना को और भावना विचारों को गहराई से प्रभावित करती है। और दोनों मिलकर आचरण को, कर्म को।

जब विचार पवित्र हों, भावनाएँ उदार हों, और कर्म नैतिक हों, तब मनुष्य सद्गुणी बनता है; तभी उसका चरित्र सुदृढ़ होता है।

अब प्रश्न है—ये तत्व आते कहाँ से हैं?
मनुष्य को विचार, संस्कार, और प्रेरणा अनेक स्रोतों से मिलती है—
(1) परिवार,
(2) मास मीडिया—टीवी, मोबाइल, अखबार, सिनेमा,
(3) पुस्तकें,
(4) मित्र,
(5) विद्यालय,
और (6) धार्मिक स्थल—मंदिर, मस्जिद, चर्च।

इन सबके मिश्रण से ही बच्चों के विचार बनते हैं, भावनाएँ निखरती हैं, और आचरण की दिशा तय होती है।

लेकिन आज एक गंभीर समस्या है—अधिकतर स्रोतों से नकारात्मक विचार, नकारात्मक भावनाएँ और गलत आचरण की प्रेरणाएँ मिल रही हैं। बच्चों का मन अत्यंत कोमल होता है; वह तुरंत प्रभावित हो जाता है। इसीलिए माता-पिता को प्रारम्भ से ही सजग रहना पड़ेगा।

हम दुनिया की सभी सड़कों पर कालीन नहीं बिछा सकते, पर अपने पैरों में जूते पहनकर स्वयं को सुरक्षित अवश्य रह सकते हैं।
इसी प्रकार बच्चों की अंतरात्मा को मजबूत, पवित्र और संरक्षित करना होगा—एक ऐसा मानसिक कवच देना होगा कि बाहरी विषैले प्रभाव उनके भीतर प्रवेश न कर सकें।

बच्चे छोटे हों, तभी उनके मन पर सबसे गहरी छाप पड़ती है। इसलिए—
✓ उन्हें चीन कर ऐसे टीवी कार्यक्रम दिखाएँ जो सद्विचार और सद्भावना जगाएँ।
✓ भगवान राम का पवित्र चरित्र इस कार्य में विशेष सहायक है।
✓ अमर चित्र कथा जैसी पुस्तकें घर में रखें—बच्चे चित्रों के माध्यम से सहज ही संस्कार ग्रहण करते हैं।
✓ और यह सब दो वर्ष से छह वर्ष की उम्र के बीच अवश्य होना चाहिए; यही निर्माण का समय है। घड़ा जब कच्चा होता है तो कुम्हार उसे मनमानी आकृति प्रदान कर सकता है। पक जाने के बाद यह कार्य कठिन हो जाता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि पके हुए खड़े का आकार तो नहीं बदला जा सकता भले ही उसका रंग रोगन बदल दिया जाए लेकिन पके हुए मनुष्य को भी परिवर्तित किया जा सकता है, यद्यपि यह कार्य कठिन हो जाता है।

शिक्षा का सबसे निर्णायक आधार है—माता-पिता का अपना चरित्र।
यदि घर के बड़े ही गलत आदतों में हों, तो बच्चों को रोकने का नैतिक अधिकार खो देते हैं।
बच्चों की संगति भी उत्तम होनी चाहिए—क्योंकि संगत ही मनुष्य का भविष्य गढ़ती है।

और अंत में—यदि माता-पिता प्रतिदिन आधा घंटा बच्चों को रामचरित और भगवद गीता का ज्ञान दें, तो उनके जीवन में सद्विचारों के बीज निश्चय ही पड़ेंगे। वही बीज आगे चलकर महान चरित्र का वटवृक्ष बन जाते हैं।

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