लंदन में रहते हुए, मैंने सोचा कि कुछ मंदिरों के दर्शन करूँ। अधिकांश मंदिर पुराने चर्चों में स्थापित थे — वे पवित्र स्थल अब अगरबत्ती और भक्ति की सुगंध से पुनर्जीवित हो उठे थे। लेकिन एक मंदिर मुझे विशिष्ट रूप से पारंपरिक लगा। वह भी एक चर्च की इमारत में था, पर उसका अग्रभाग दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित था। मैंने निश्चय किया कि मैं उसी मंदिर में जाऊँगा।
वह मंदिर विम्बलडन में था, और वहाँ पहुँचने में लगभग दो घंटे लगे — कई बसों और ट्रेनों को बदलते हुए।
यात्रा के अंतिम भाग में मैंने देखा कि एक वृद्ध एशियाई सज्जन मेरे पास खड़े होकर मुस्कुरा रहे थे। मैंने उन्हें अपने पास बैठने का आग्रह किया। बातचीत आरंभ हुई।
जब मैंने बताया कि मैं गणपति मंदिर खोज रहा हूँ, तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “मैं भी वहीं जा रहा हूँ, आप मेरे साथ चलिए।”

जब हम ट्रेन से उतरे, तो मैंने बाहर निकलते समय अपना कार्ड बैरियर पर टैप किया, पर वे बिना टैप किए ही बाहर चले गए। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने पूछा, “आपने कार्ड क्यों नहीं लगाया?” उन्होंने सहज भाव से कहा, “हम जैसे वरिष्ठ नागरिकों के पास यहाँ फ्रीडम पास होता है। इससे हम कहीं भी बिना किराया दिए यात्रा कर सकते हैं।”
यह सुनकर मैं भीतर तक प्रभावित हुआ। बुजुर्गों को सम्मान देने का कितना सुंदर और सजीव तरीका है यह—उन्हें गरिमा, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता प्रदान करने वाला। काश, भारत में भी ऐसा कोई उपहार अपने वरिष्ठ नागरिकों को दिया जा सके।
हम साथ-साथ मंदिर की ओर चलने लगे। उन्होंने बताया कि उस दिन उनका पचासीवाँ जन्मदिन था। उनका परिवार शाम को मंदिर आएगा, पर वे सुबह ही शांत भाव से भगवान के दर्शन करना चाहते थे। मंदिर पहुँचकर जब उन्होंने जूते उतारे, तब मैंने देखा कि उनका एक पैर कृत्रिम था, फिर भी उनकी चाल में संतुलन और सौम्यता थी। दर्शन के बाद उन्होंने मुझसे अनुमति माँगी, क्योंकि मंदिर का एक भक्त उन्हें कार से उनके घर के पास तक छोड़ने जा रहा था।
“फ्रीडम पास”—यह शब्द मेरे मन में गूंजता रहा। यह केवल एक सामाजिक योजना नहीं, बल्कि एक सुंदर प्रतीक है। वृद्धावस्था में भगवद गीता भी एक महान फ्रीडम पास है। यदि कोई अपने साथ गीता की छोटी प्रति रखे और जब-तब उसका अध्ययन करे, तो वह मन को भूत के बोझ, वर्तमान की पीड़ा, भविष्य की चिंता और मृत्यु के भय से मुक्त कर देती है।
राज्य शरीर को चलने की स्वतंत्रता देता है,
पर गीता आत्मा को उड़ने की स्वतंत्रता देती है।
फ्रीडम पास बुजुर्ग को मंदिर तक ले जाता है—
पर गीता उसे स्वयं भगवान तक पहुँचा देती है।
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