यात्रा वृत्तांत – 1

  • ब्रह्म बोधि

सन् 1996 की बात है — जब मैं पहली बार इंग्लैंड आया था। युवा ऊर्जा, जिज्ञासा और अनदेखी दुनिया को समझने की उत्कंठा से भरा वह समय आज भी स्मृतियों में ताजा है। मेरा अधिकांश समय यॉर्क शायर में बीता। शांत, सुंदर और ऐतिहासिक वातावरण ने गहरा प्रभाव छोड़ा। उस दौरान अवसर मिला कि उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड और लंदन जैसे स्थानों की यात्रा कर सकूँ।

समय का चक्र घूमता है। लगभग तीस वर्षों बाद, एक बार फिर नियति ने मुझे इंग्लैंड पहुंचा दिया — और मैं लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर खड़ा था।
वही देश, वही हवा, वही नाम — लेकिन अनुभव थोड़ा नया।

इस बार मैंने महसूस किया कि भारत के हवाईअड्डे, विशेषकर दिल्ली और बेंगलुरु, अब आधुनिकता और सुगमता में हीथ्रो से भी आगे निकल चुके हैं।
वह देश, जिसे हम कभी आदर्श मानते थे, अब पीछे छूटता प्रतीत हुआ — और भारत, जो कभी विकासशील कहलाता था, अब आत्मविश्वास से भरा उभरता हुआ दिखा।

एक पुरानी याद

तीस वर्ष पहले की एक घटना अब भी मन में ताजा है।
मैं इंग्लैंड के एक शहर बर्मिंघम के बस स्टैंड पर बैठा था। बगल में एक ब्रिटिश नागरिक बैठे थे, उम्र में मुझसे बड़े।
उन्होंने सहज जिज्ञासा से पूछा,

“आप किस देश से हैं?”

मैंने कहा — “इंडिया से।”
वे कुछ क्षण मौन रहे, आसमान की ओर देखते हुए मानो अपने मन के नक्शे पर ‘India’ को खोज रहे हों। फिर धीरे-धीरे बोले —

“Oh! That poor country… India!”

उनके शब्दों में कोई तिरस्कार नहीं था, लेकिन एक दया-भाव अवश्य झलक रहा था। उस क्षण मेरे भीतर एक हल्की टीस उठी थी — जैसे किसी ने मेरे देश की आत्मा को दीन कह दिया हो।

आज का भारत, आज का अनुभव

अब, इतने वर्षों बाद, उसी देश की धरती पर खड़े होकर जब मैंने चारों ओर देखा, तो दृश्य कुछ और था।
हीथ्रो एयरपोर्ट पहले जैसा भव्य नहीं लगा — उसकी दीवारों की चमक कुछ फीकी पड़ गई थी। लोगों के चेहरों की चमक भी कम हो गई थी।
वहीं दूसरी ओर भारत के आधुनिक हवाईअड्डे — उनकी स्वच्छता, प्रबंधन और गरिमा — अब किसी भी विकसित देश से कम नहीं।

दुनिया बदल रही है, देश बदल रहे हैं — और भारत तो मानो नई चेतना से जाग उठा है।
पर हर परिवर्तन एक जैसा नहीं होता।

जब मैं पहली बार आया था, उस समय एक ब्रिटिश पाउंड ₹70 के बराबर था;
आज वही लगभग ₹120 है।
तब एक अमेरिकी डॉलर ₹27 का पड़ता था;
आज लगभग ₹100 का।

मुद्राएँ बदली हैं, मूल्य बदले हैं —
पर सबसे बड़ा परिवर्तन है भारत की मानसिकता में।
अब वह देश ‘गरीब और दीन भारत’ नहीं, बल्कि आत्मविश्वास से भरा भारत है — जो अपने ज्ञान, संस्कृति और प्रगति से पूरी दुनिया को नया दृष्टिकोण दे रहा है।

अंत में

तीस वर्षों के अंतराल में बहुत कुछ बदल गया —
पर जो नहीं बदला, वह है मानव की खोज —
कुछ पाने की, कुछ जानने की, और अंततः अपने भीतर ईश्वर को पहचानने की।

हीथ्रो की हवा में आज भी वही ठंडक है, पर भीतर कहीं एक नया ताप है —
भारत की आत्मा का ताप, जो अब दुनिया को आलोकित करने के लिए तैयार है।

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