अध्यात्म में विशेष रूप से, और जीवन में सामान्य रूप से, मनुष्य को भावना और बुद्धि—दोनों की समान आवश्यकता होती है। इनके संतुलन के बिना जीवन भी सुखी और सफल नहीं होता।
भगवान ने भगवद् गीता में बुद्धि और श्रद्धा भावना—दोनों को अत्यंत महत्व दिया है। भगवान कहते हैं कि अध्यात्म में श्रद्धा के बिना कोई प्रगति संभव नहीं है—
अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्। असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह॥ (गीता 17.28)
अर्थ: हवन, दान, तप आदि यदि श्रद्धा के बिना किए जाएँ, तो वे “असत्” कहलाते हैं—न इस जीवन में फल देते हैं, न मरणोपरांत।
किंतु अन्यत्र भगवान यह भी कहते हैं कि आध्यात्मिक प्रगति में, और भवचक्र से मुक्ति पाने में, बुद्धि का भी बहुत बड़ा स्थान है—
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः। मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥ 3:42॥
अर्थ : इंद्रियाँ स्थूल शरीर से परे—ऊपर, श्रेष्ठ, सूक्ष्म—हैं। इन इंद्रयों से परे मन है, मन से भी परे बुद्धि, और जो बुद्धि से भी परे है, वह है आत्मा।
एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्॥ 3:43॥
अर्थ : इस प्रकार बुद्धि से शुद्ध आत्मा को जानकर स्वयं (बुद्धि) द्वारा स्वयं (मन) को वश में करके, हे महाबाहो, तुम इस दुर्जेय कामरूप शत्रु का हनन कर डालो।
बुद्धि की भूमिका नहीं समझने के कारण, या गुरुओं द्वारा नहीं समझाए जाने के कारण,
हम देखते हैं कि अधिकांश साधक, दशकों तक साधना करने पर भी, कोई ठोस आध्यात्मिक उपलब्धि नहीं पा पाते। साधना संचित अवश्य होती है—पर श्रद्धा और बुद्धि का संतुलन न हो तो फल दूर हो जाता है।
उदाहरण के लिए, मंत्र-जप या नाम-जप—अनेक लोग वर्षों से करते हैं; पर कोई विशेष अनुभूति या आध्यात्मिक लब्धि हाथ नहीं लगती। यह अनुभवगम्य तथ्य संकेत करता है कि भूल कहीं हो रही है, जिसे हमें समझना चाहिए, और नहीं दोहराना चाहिए।
लेकिन जब गुरु एक सरल सा नुस्खा देकर शिष्यों को छोड़ दें कि यह गुरु मंत्र है और इसका जाप करते रहो और इसी से सब हो जाएगा तो भक्त भी क्या करें?
लेकिन सबसे बड़े गुरु भगवान कृष्ण भक्तों को मिसगाइड नहीं करते। वे स्पष्ट रूप से सारे सूत्र बता देते हैं कि कैसे आध्यात्मिक उपलब्धियां हाथ लगती है, किस प्रकार भगवान की भक्ति ईश्वर प्राप्ति और मोक्ष में फलित होती है।
इसलिए जो गंभीर साधक हैं उन्हें गीता नित्य पढ़नी चाहिए और ध्यान से पढ़नी चाहिए कि भगवान का संदेश वास्तव में क्या है।
हरि शरणम्!
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