ईश्वर-प्राप्ति और आध्यात्मिक प्रगति के लिए चित्त-शुद्धि उतनी ही आवश्यक है, जितनी खेती करने से पहले भूमि की तैयारी। यदि आप बिना भूमि तैयार किए बीज बो देंगे, तो उत्तम फसल नहीं होगी। इसी प्रकार, यदि आपका चरित्र निर्मल नहीं हुआ है, तो चाहे आप कितना भी जप करें, उसका फल सीमित रहेगा।
इसलिए, मैं पुनः आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करता हूँ कि भगवद् गीता के 12वें अध्याय के 13वें से 19वें श्लोक और 16वें अध्याय के पहले से तीसरे श्लोक के आलोक में प्रतिदिन आत्म-मूल्यांकन करें।
प्रयास यह रहे कि आपका चित्त उन श्लोकों के मानदंडों पर खरा उतरता जाए। यह एक दिन में नहीं होगा, परंतु यदि आप सभी मानदंडों पर खरे नहीं भी उतर पाते, तो अधिकांश पर खरे उतरना अनिवार्य है।
जब ऐसा होगा, तब आपके द्वारा किया गया कोई भी आध्यात्मिक साधन शीघ्र ही फलदायी सिद्ध होगा।
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