अध्यात्म एक गंभीर विषय है—अत्यंत गंभीर विषय। सच पूछिए तो जीवन स्वयं एक बहुत गंभीर विषय है; किंतु उसकी गंभीरता बहुत कम लोग समझ पाते हैं। जो यह बात समझ लेते हैं कि मनुष्य का पुनर्जन्म किसी भी योनि में, किसी भी दयनीय स्थिति में हो सकता है, और जो यह जान लेते हैं कि आत्मा की मृत्यु के बाद कितनी दुर्दशा हो सकती है, वे सचमुच जाग जाते हैं।

इस जीवन में और मृत्यु के बाद के जीवन में कैसे सुखी और आनंदित बने रहें, इस पर गंभीर चिंतन करना चाहिए। भगवद गीता इसके लिए सर्वोत्तम मार्गदर्शक है।

इसलिए मैं पुनः स्मरण कराना चाहता हूँ कि जो अपने जीवन के आध्यात्मिक कल्याण के प्रति गंभीर हैं, उन्हें ये तीन ग्रंथ अपने घर में अवश्य लाने चाहिए। इन तीनों का नियमित अध्ययन कीजिए—यदि आप बहुत व्यस्त नौकरी में नहीं हैं तो प्रतिदिन कुछ समय अवश्य निकालें। यदि अत्यधिक व्यस्त हैं, तो कम से कम भगवद गीता का एक अध्याय रोज़ समझकर पढ़ें, और सप्ताहांत में भागवत पुराण तथा रामचरितमानस का पाठ करें। रामचरितमानस पढ़ने से हृदय में गहरी शांति उत्पन्न होती है, और श्रीराम के चरित्र से उच्च आध्यात्मिक संस्कार विकसित होते हैं। भागवत पुराण अध्यात्म का अथाह सागर है—उसे भी कम से कम सप्ताहांत में अवश्य पढ़ना चाहिए।

यदि यह अभ्यास छह महीने तक निरंतर किया गया, तो आप पाएँगे कि आपकी आध्यात्मिक भूमि तैयार होने लगी है।

आपने अपने संतों को यह कहते अवश्य सुना होगा कि मोक्ष प्राप्ति में सैकड़ों जन्म लग जाते हैं। यह सैकड़ों जन्म ईश्वर-प्राप्ति में नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रवेश हेतु अपने मन के घर को स्वच्छ करने में लगते हैं। जब मन निर्मल हो जाता है, तब ईश्वर का प्रवेश स्वतः होने लगता है। रामचरितमानस में भगवान कहते हैं—
“निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा।”

यदि उपर्युक्त तीनों ग्रंथों का आप नियमित अध्ययन करेंगे, तो आपका मन शीघ्र ही शुद्ध हो जाएगा। जो लोग और भी तीव्र गति से आत्म-शुद्धि करना चाहते हैं, उन्हें प्रतिदिन रात्रि में आत्म-मूल्यांकन और आत्म-समीक्षा करनी चाहिए; और यदि प्रतिदिन न हो सके, तो कम से कम सप्ताहांत में अवश्य बैठकर करें। इससे आत्म-शुद्धि की प्रक्रिया सौ गुना शीघ्र हो जाती है।

इसलिए आत्म-समीक्षा और आत्म-मूल्यांकन का अभ्यास अवश्य करते रहिए। आप में से जो लोग अत्यंत उत्सुक या व्यग्र हैं अपनी आध्यात्मिक प्रगति के लिए, वे “15” से समाप्त होने वाले नंबर पर अपना संदेश भेज दें—उनके लिए मैं अलग से विशेष मार्गदर्शन की व्यवस्था करूंगा।

इस समूह में अभी ऐसे सदस्यों की संख्या अधिक है जो अध्यात्म में सामान्य या प्रारंभिक रुचि रखते हैं; इसलिए अत्यंत गूढ़ विषयों पर बार-बार चर्चा करना यहाँ संभव या उचित नहीं होगा। ऐसी बातें तो उन्नत साधकों और विकसित अध्यात्म-प्रेमियों के लिए ही उपयुक्त हैं।

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