कैसे मुक्ति पाएं काम वासना से?
(एक जिज्ञासु आत्मा की सच्ची पुकार और शास्त्रसम्मत समाधान)

प्रश्न:
जय श्री राधे गुरुजी। मेरा मन कामवासना में फंसा हुआ है। बड़ी टेंशन रहती है। नाम जप करने की सोचता हूँ पर होता नहीं। दो साल पहले एक विवाहित स्त्री से प्रेम हुआ था, उसके बच्चे भी हैं। आज भी कभी-कभी उससे बात हो जाती है, मैं उसे भूल नहीं पा रहा हूँ। जैसे ही नाम जप करने बैठता हूँ, उसी की याद आने लगती है। मैंने अपने दिल की बात आपसे कह दी। कृपया बताएं मुझे क्या करना चाहिए? 🙏

उत्तर: (ब्रह्म बोधि)
आत्मन,
आपका प्रश्न बहुत ही गम्भीर और सच्चे अंतःकरण से निकला हुआ है। सबसे पहले यह समझिए कि आप अकेले नहीं हैं जो इस प्रकार की मानसिक और भावनात्मक उलझनों से जूझ रहे हैं। आज के युग में यह एक आम और गहरी समस्या है — लेकिन लोग इसे समस्या मानते ही नहीं।
आपकी जागरूकता ही पहला कदम है मुक्ति की ओर। यही भाव आपको इस बंधन से बाहर ले जाएगा, क्योंकि आपने सत्य को स्वीकार किया है और समाधान की खोज में हैं।


📿 शरणागति समाधान है

भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं:

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया। मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥
(भगवद्गीता 7.14)

👉 यह मेरी माया त्रिगुणमयी (सत्त्व, रज, तम) बड़ी दुस्तर है,
पर जो मेरी शरण में आ जाते हैं, वे इस माया को पार कर जाते हैं।

🔑 अतः समाधान का मार्ग है – भगवद्शरणागति।
आप इस ग्रुप में बने हुए हैं, यह प्रमाण है कि ईश्वर की कृपा आप पर प्रारंभ हो चुकी है।


कामवासना से कैसे बचें? भय और प्रेरणा से

मनुष्य दो कारणों से पाप से दूर होता है:

  1. भय से, जब वह उसके भयंकर परिणामों को जानता है।
  2. प्रेरणा से, जब वह ऊँचे आध्यात्मिक लक्ष्यों को पाना चाहता है।

कामवासना, विशेषकर किसी विवाहित स्त्री से संबंध, केवल मानसिक अशांति ही नहीं, बल्कि पारलौकिक दृष्टि से भी गंभीर पाप है।

महाभारत में कथा आती है –
राजा नहुष एक तेजस्वी और धर्मात्मा राजा थे, जिन्हें एक बार इंद्र का पद भी मिला। लेकिन वे इंद्र की पत्नी शची के प्रति कामवासना से ग्रस्त हो गए। इस अधर्म का परिणाम यह हुआ कि अगले जन्म में वे अजगर बने।
कल्पना कीजिए — एक राजा से अजगर बनने तक का पतन!

काम भावना को कैसे नियंत्रित करें?

  1. बाह्य उद्दीपक से बचिए
    कामुक वीडियो, चित्र, साहित्य आदि से पूरी तरह दूर रहिए। यह काम की आग को बढ़ाते हैं।
  2. शास्त्र और कथा का अध्ययन करें
    रामायण, गीता और भागवत का नित्य पाठ करें। श्रीराम का चरित्र पढ़िए, यह अत्यंत पावन है और मन को निर्मल करता है।
  3. भगवन्नाम जप के समय
    भगवान की तस्वीर सामने रखें, उन्हीं को देखें।
    मन जब भटके, आंखें फिर से तस्वीर पर टिकाइए।
  4. स्त्री का ध्यान आए तो उसे देवी रूप में देखिए
    साधक जब स्त्री में आकर्षण अनुभव करते हैं, तो उसे माँ दुर्गा के रूप में देखने की साधना करते हैं।
    यह अभ्यास मन को अधोगति से बचाता है।

-काम – यदि धर्म के विरुद्ध न हो, तो वह भी भगवान का रूप है

धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ॥ (गीता 7.11)

👉 भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं –
“मैं वह काम हूँ जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।”

🔸 धर्मसम्मत संबंध (जैसे विवाह) में रतिकर्म पवित्र और स्वाभाविक है।
🔸 लेकिन अधर्मपूर्ण रतिकर्म (जैसे परस्त्रीगमन) — महापाप है।


📵 व्यवहारिक उपाय:

  • उस स्त्री से फोन पर बात करना भी त्याग दें, भले ही आप की भावना ‘शुद्ध’ लगे।
  • मन को अन्यत्र लगाइए, सेवा, साधना, जप और कथा में।

📌 निष्कर्ष

  • नाम जप जारी रखिए, चाहे मन भटके।
  • धीरे-धीरे मन निर्मल होगा, और काम वासना शांत हो जाएगी।
  • यह एक प्रक्रिया है, इसमें धैर्य और दृढ़ता आवश्यक है।
  • भगवान की कृपा और आपका पुरुषार्थ— यही दोनों मिलकर आपको पूर्ण मुक्ति देंगे।

हरि शरणम्।

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