
प्रश्न : बैकुंठ में भला मणियों और रमणियाँ का क्या काम?🙏🙏🙏
उत्तर (ब्रह्म बोधि):
मोक्ष दो प्रकार के हैं : सगुण मोक्ष निर्गुण मोक्ष। दोनों में जन्म मरण और सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है। सगुण मोक्ष भक्ति मार्गियों के लिए है जो निराकार ब्रह्म में अपने आप को विलय नहीं करना चाहते। निर्गुण मोक्ष मुख्य रूप से ज्ञान मार्ग के निराकारवादी सन्यासियों के लिए होता है जो पर ब्रह्म में अपना पूर्ण विलय कर अपना अस्तित्व विलीन कर देना चाहते हैं।
उसे “ब्रह्म निर्वाण” कहते हैं। बैकुंठ ब्रह्म निर्वाण से भिन्न है। “निर्वाण” का अर्थ होता है “निर्वापित” हो जाना, बुझ जाना, जैसे दीपक बुझ जाता है। सगुण मोक्ष वह है जहां ईश्वर भी साकार सगुण अवस्था में रहते हैं और भक्त भी साकार सगुण अवस्था में।
जीव के स्थूल और सूक्ष्म शरीर का नाश होता है मोक्ष में। किंतु सगुण मोक्ष में बैकुंठ जाकर वहां का दिव्य अविनाशी “भुवनज” शरीर मिलता है।
जहां तक आभूषणों और कीमती मणियों का सवाल है, बैकुंठ बैंक उनकी कोई कीमत नहीं होती, कीमत इस संसार में होती। बैकुंठ में ऐश्वर्य है।
जहां तक बैकुंठ में रूपवती रमणियां क्यों हैं, यह प्रश्न है, तो बैकुंठ में पुरुष भी जाते हैं और स्त्रियां भी जाती हैं। क्या वहां स्त्रियां नहीं जानी चाहिए? सिर्फ पुरुष जाने चाहिए? और वे दोनों ही रूपवान होते हैं, क्योंकि वहां कोई भी कुरूप नहीं होता।
क्योंकि वहां माया का प्रवेश नहीं है इसलिए रूपवान स्त्रियों को देखकर रूपवान पुरुषों के मन में और रूपवान पुरुषों को देखकर रूपवान स्त्रियों के मन में कोई विकार उत्पन्न नहीं होते।
जो कुछ सर्वश्रेष्ठ की कल्पना की जा सकती है सब कुछ बैकुंठ में है। और भक्त वहां अविनाशी भुबांध शरीर में रहकर अनंत काल तक कुछ दिव्य सुख का अनुभव करते हैं तो सदा सर्वदा कुंठा मुक्त होता है। इसीलिए तो वह “वैकुंठ” कहा जाता है।
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